योग सधना में शब्द, अर्थ और ज्ञान का महत्व
- Posted by Manovikas eGyanshala
- Categories Sachetan, Wellness, अष्टांग योग Ashtanga Yog
- Date November 18, 2021
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साधनपाद में योग के पांच बहिरंग साधन यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार बतलाये गए थे। इस पाद में उसके अन्तरङ्ग धारणा , ध्यान, समाधि का निरूपण करते हैं। इन तीनों को मिलकर संयम कहा जाता है। वह ध्यान ही समाधि कहलाता है, जब उसमें केवल ध्येय अर्थ मात्र से भासता है और उसका (ध्यान का) स्वरूप शून्य-जैसा हो जाता है।यानी उस विषय या उस उद्देश्य का जब स्वरूप और अर्थ बदलने लगता है। शब्द, अर्थ और ज्ञान के विकल्पों से संयुक्त सवितर्क (तर्क-वितर्कपूर्वक) समापत्ति अर्थात समाधि कहलाती है।
शब्द- जिसे हम मुख से उच्चारित करते हैं और कान से जिसका श्रवण किया जाता है। जैसे किसी बच्चे का नाम रोहित, श्याम इत्यादि। जैसे किसी पशु का नाम हाथी, गौ इत्यादि।
अर्थ- शब्द में निहित एक अर्थ होता है जो किसी जाति विशेष का बोध कराता है, वस्तु, प्राणी आदि के विशिष्ट गुणों का ज्ञान कराता है। जैसे श्री राम शब्द का उच्चारण करने से हमें राजा दशरथ पुत्र का बोध होता है, सीता मैया जिनकी अर्धांगिनी थी, हनुमान जिनके भक्त थे, जिन्होंने लंका विजय कर राक्षस रावण का वध किया था आदि अनेक अर्थ उपस्थित हो जाते हैं।
ज्ञान- कानो से शब्द सुनकर, उस शब्द के विशेष अर्थ का बोध कराने वाली सत्त्वप्रधान बुद्धि जब एक अलग अलग प्रकार से शब्द, उसका अर्थ एवं यही इस शब्द का अर्थ है ऐसा ज्ञान कराती है|
वस्तुतः शब्द, उसका अर्थ एवं उसका ज्ञान यह तीन अलग अलग प्रक्रिया है। जब बालपन में हम शब्द का उच्चारण सीखते हैं और प्रत्येक शब्द को उसके अर्थ के साथ मिलाते हैं तो यह हमारे अभ्यास में दृढ़ हो जाता है, जिसके कारण से शब्द सुनते ही हमें उसका अर्थ बोध जो जाता है। इस प्रकार हमें लगता है कि शब्द और उसका अर्थ एवं ज्ञान इसमें कोई भेद नहीं है पर तात्त्विक दृष्टि से ऐसा नहीं होता है।
पहले शब्द सुनाई देता है, फिर उसका जो विशेष अर्थ है उसका हमें बोध होता है और तत्पश्चात उस शब्द का यही अर्थ होता है यह निश्चयात्मक ज्ञान हमें होता है।
जब योगी एकाग्रचित्त अवस्था में “गौ” इस पर मन को एकाग्र किया जाता है तब गौ(शब्द), गौ (अर्थ) एवं गौ (ज्ञान) इस प्रकार तीन अलग अलग प्रकार से यह भासता है अर्थात तीनों को पृथक देखता है। गौ का शब्द-अर्थ एवं ज्ञान को अलग अलग साक्षात्कार करता है । योगी की इस अवस्था को योग की भाषा में सवितर्का समापत्ति कहते हैं।
जब बच्चा बोलना सीख रहा होता है तो वह एक अत्यंत जटिल प्रक्रिया से गुजरता है। वह अपने चारों ओर घटित हो रही प्रत्येक घटना का गहनता से देखता है। जब भी वह एक निश्चित शब्द को बार बार सुनता है, एक जैसे सुनाई देने वाले शब्दों के ऊपर उसका ध्यान जाता है तब वह अपने आस पास उपस्थित वस्तुओं को उस शब्द के साथ मिलाने का प्रयास करता है। प्रत्येक बार जब भी वह पानी ऐसा शब्द सुनता है तो उसके आस पास हर वस्तु का वह निरीक्षण करता है जिसे पानी कहा जा रहा है। जब घर में कोई कहता है पानी दीजिए तब बच्चा शब्द सुनता है और अनुमान लगाता है कि पानी क्या है? जब घर का कोई सदस्य ग्लास में पानी लेकर आता है और कहता है ये लीजिये पानी! तो उस समय बच्चा ग्लास को पानी समझता है।
इसी प्रकार जब कोई कहता है नहाने को पानी रख दीजिए, तब बच्चा बड़ी बाल्टी को पानी समझता है, इस प्रकार जब भी पानी शब्द सुनता है तब तब वह पानी किसे कहा जा रहा है यह निरीक्षण करता रहता है। और तब तक करता है जब तक वह निश्चित नहीं हो जाता कि पानी शब्द का वस्तुतः अर्थ क्या है? जब देखता है कि इस बार ग्लास तो नहीं है अपितु बड़ी बाल्टी जैसा कुछ है तो वह ग्लास के अर्थ को छोड़ देता है। फिर जब कभी बाल्टी न होकर केवल पानी होता है तो वह इस निर्णय पर पहुंचता है कि जब जब पानी शब्द बोला गया यह जो तरल पदार्थ है वह ग्लास में भी था, बाल्टी में भी था, पाइप से भी निकल रहा था इसलिए यह तरल बहने वाला पदार्थ ही पानी है।
इस प्रकार एक बार निश्चित ज्ञान हो जाने के बाद जब भी पानी शब्द का उच्चारण किया जाएगा तब उसे तत्क्षण अर्थ बोध हो जाएगा और इस तरल शब्द को ही पानी कहते हैं ऐसा ज्ञान भी हो जाएगा।
आपने देखा कि किस तरह प्रारंभ में बच्चे के लिए शब्द अलग था, फिर उसका अर्थ अलग से बोध हुआ और अंत में तरल पदार्थ को ही पानी कहा जा रहा है ऐसा ज्ञान हुआ।
धीरे धीरे प्रत्येक शब्द के विषय में (शब्द-अर्थ और ज्ञान) का एक्य होने लगता है। इसलिए जब योगी को पुनः इनका पृथक पृथक बोध होकर इनमें तदाकार वृत्ति बनने लगे जाए तो इसे ही सवितर्का समापत्ति कहते हैं।
अब आगे के सूत्र में निर्वितर्का समापत्ति की परिभाषा कहेंगे।
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