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सचेतन का आयोजन मनोविकास द्वारा जीवन के तनाव को दूर करने के लिए किया जाता है। सचेतन का आयोजन हर सोमवार से शनिवार सुबह दस बजे ज़ूम के माध्यम से होता है, जिसमे हम कई प्रकार की गतिविधियां करते है जो पूर्ण रूप से हमारे आत्मा और मस्तिष्क से संबंधित है। सचेतन में सुविचार की गतिविधि का संचालन मनोविकास के प्रबंध सचिव डॉ आलोक कुमार जी द्वारा होता है। सचेतन के कुछ सत्रों में डॉ अलोक सर के माध्यम से हमे ये जानने को मिला कि इस संसार में ब्रह्म से लेकर स्थावर/स्थायी पर्यन्त सभी जाति के प्राणियों के सदैव दो-दो शरीर होते हैं। एक तो सूक्ष्म शरीर, जो शीघ्रता पूर्वक सब कार्य करने वाला तथा सदैव चंचल होता है। दूसरा मांस का बना हुआ स्थूल शरीर है, जो मन के कहे बिना कुछ नहीं कर सकता। मानव-शरीर परमात्मा का आश्रय स्थल है और वस्तुतः हमारी आत्मा एक साथ दो शरीरों में निवास करती है जिसे स्थूल और सूक्ष्म शरीर के नाम से जाना जाता हैं। |
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आत्मा अपने शुद्ध रूप में स्थूल शरीर में निवास नहीं कर सकती । शुद्ध अवस्था में आत्मा, परमात्मा ही होता है। हम यह भी जानते है की आत्मा में अशुद्धि प्रवेश नहीं कर सकती। अतः परमात्मा आदि शक्ति जिसे माया कहते हैं , ऊपर एक आवरण लपेटती है। वह आवरण किसी पदार्थ से नहीं बल्कि मन बुद्धि एवं अहंकार से बनता है, मन बुद्धि एवं अहंकार से युक्त इस आवरण को ही सम्मिलित रूप से सूक्ष्म शरीर कहते है। |
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उक्त दोनों शरीर में से जो मांस मय स्थूल शरीर है, वह सभी लोगों को प्रत्यक्ष दिखाई देता है। इसी पर सब प्रकार के श्रापों, विद्याओं (आभिचारिक कृत्यों) तथा विष, शस्त्र आदि विनाश के साधन-समूहों का आक्रमण होता है। यह मांस मय शरीर असमर्थ, दीन, क्षणभंगुर, कमल के पत्ते पर पड़े हुए जल के समान चञ्चल तथा प्रारब्ध आदि के अधीन है। मांस मय देह (पाञ्चभौतिक स्थूल शरीर) - का कोई भी पौरुष-क्रम सफल नहीं होता। |
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मनोविकास के माध्यम से बौद्धिक और विकासात्मक रूप से दिव्यांग लोगों में आत्मविश्वास विकसित करने, और अपने भविष्य के लिए सपने विकसित करने का मौका दिया जाता है, जो समावेशी समाज में शामिल हैं और परिवार के लिए कमाई करने वाले सदस्य बनने का मौका दिया जाता है।
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मनोलया…. समावेशी समाज की तरफ एक कदम |
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