वेद, इतिहास और पुराण कहते हैं कि ब्रह्मा की यह सृष्टि गुण-अवगुणों से सनी हुई है।
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स्थूल-शरीर और मनोमय शरीर की विशेषता:

जगत्की मनोमयता में संकल्पमय होना

समष्टि मन रूप तत्त्व में होता है जिनका आकार है, समष्टि मन भगवान् ब्रह्मा के संकल्पमय होने के कारण उसी को देखते हैं। 

"अज्ञोऽहं" यह की यह अनुभूति इस लोक में जन्म होने के बाद स्व और स्वकाय के आभास और अभ्यास की सरूपता होने के साथ शुरू होने लगता है जिसके कारण मनुष्य को अज्ञान या माया होना शुरू हो जाता है। माया (विभ्रमेण ) होता है जिसको भ्रमरूप में अपने निज के विलास के लिय मनुष्य संमोहम् हो जाता है यानी भोग विलास से जीवन यापन करना ही संकल्प बन जाता है। फिर जीवत्वादिक महा भ्रांति को (जनयति ) उत्पन्न होती है । 

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स्थूल-शरीर और मनोमय शरीर की विशेषता
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