दर्शन, दृश्य, दृष्टि और हम कभी कभी यह कहते हैं कि किसी देवता या पवित्र व्यक्ति की शुभ दृष्टि हम पर है ।दर्शन शब्द अध्यात्म और विज्ञान को आपके पास लाता है और यह जुड़ाव, मिलन या कहें उपासकों को भगवान के दर्शन मिलने को संदर्भित करता है।
दर्शन के कई रूप हैं किसी भी चीज़, व्यक्ति, पुरुष, परमात्मा, परमेश्वर, प्रभु को देखने के लिए दृष्टि यानी अनुमान, प्राक्कलन, दृष्टि, आदर, सम्मान का होना। और हम कह सकते हैं कि किसी प्रेत, रूह या छाया का आभास होना। या इसे किसी भी वस्तु, आत्मा, प्राण, जीव, चरित्र, अक्षर, पात्र, स्वरूप, विशेषता, साथी, व्यक्ति, मित्र, सहचर, पुस्र्ष, का एक झलक मिलना।
दर्शन सिर्फ़ आपको यथार्थ को परखने के लिए एक दृष्टिकोण देता है जिससे आपके अंदर एक जिज्ञासा पैदा होती है की आप किसी सत्य एवं ज्ञान को खोज कर सकें उसको पा सकें और आप महसूस कर सकें की आपके अंदर एक विद्या का विकास हो रहा है जिससे आपके अंदर तर्कपूर्ण, विधिपूर्वक एवं क्रमबद्ध विचार की कला विकसित होती है।
दर्शन का अनुभव परिस्थिति के अनुसार होता है। यही कारण है कि संसार के भिन्न-भिन्न व्यक्तियों ने समय-समय पर अपने-अपने अनुभवों एवं परिस्थितियों के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रभु दर्शन को बताने की कोशिश की है।
प्रभु दर्शन के दूसरे आयाम को विशेष रूप से विज्ञान के साथ संबंध जोड़ सकते हैं। विज्ञान हमें वास्तविकता से परिचित करता है। अत: विभिन्न विज्ञानों द्वारा प्रस्तुत की हुई वास्तविकताएं, जिनका सम्बन्ध प्रकृति तथा वातावरण से है और यहाँ भी प्रभु की निवास है।
आप क्या खोज करना चाहते हैं? किस सत्य को जानना चाहते है? कैसे व्यक्ति, पुरुष, परमात्मा, परमेश्वर, प्रभु को देखने चाहते हैं? आपका अनुमान इसके लिए क्या है? आप किस रूप में उनका आदर, सम्मान करना चाहते है यानी पात्रता, स्वरूप, चाहे वह साथी, मित्र, सहचर, किस रूप में आपका विश्वास है यह बहुत महत्वपूर्ण है। |