निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्
Issue No. {99}/{Sachetan} Date of Publication: 15 January 2024
वैद्य पंडित कैलाश मिश्र "दीनबंधु" जी की सातवीं स्मृति
मनोविकास परिवार की ओर से सभी आत्मीय जनों को नववर्ष 2024 की शुभकामनाएं। ०२ जनवरी 2024 को मनोविकास द्वारा  वैद्य पंडित कैलाश मिश्र "दीनबंधु" जी के सातवें स्मृति, 9 वें दीक्षांत सह पुरस्कार समारोह का आयोजन किया गया जिसका विषय था निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्।  इस व्याख्यान में  श्री  आर. मुरलीधरन जी,   श्री अरविन्द शारदा जी सहित मनोविकास के बोर्ड मेंबर्स शामिल हुए। दीक्षांत समारोह हमेशा से ही एक एैसा  विशेष अवसर होता है, जिसमें हम शुरू के वर्षो में कीगयी कड़ी मेहनत को  लक्ष्यों की प्राप्ति व सफलता की प्राप्ति से जुड़ते हुए देखते हैं।
मनोविकास परिवार की ओर से सभी आत्मीय जनों को नववर्ष 2024 की शुभकामनाएं। ०२ जनवरी 2024 को मनोविकास द्वारा वैद्य पंडित कैलाश मिश्र "दीनबंधु" जी के सातवें स्मृति, 9 वें दीक्षांत सह पुरस्कार समारोह का आयोजन किया गया जिसका विषय था निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्। इस व्याख्यान में श्री आर. मुरलीधरन जी, श्री अरविन्द शारदा जी सहित मनोविकास के बोर्ड मेंबर्स शामिल हुए। दीक्षांत समारोह हमेशा से ही एक एैसा विशेष अवसर होता है, जिसमें हम शुरू के वर्षो में कीगयी कड़ी मेहनत को लक्ष्यों की प्राप्ति व सफलता की प्राप्ति से जुड़ते हुए देखते हैं।
निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्
श्री आर मुरलीधरन जी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध दार्शनिक स्वामी पार्थसारथी के वरिष्ठ शिष्य हैं। स्वामी पार्थसारथी (उनके शिक्षक) वेदांत दर्शन के महानतम प्रतिपादकों में से एक हैं। उनका सहभागी होकर मनोविकास के दीक्षांत समारोह में आना और मनोविकास परिवार को आशीर्वाद देना एक अद्वितीय और सुखद अनुभव था। उन्होंने 'निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्' पर एक विशेष प्रकाश डाला और हमें यह समझाया कि कैसे कोई भी निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् हो सकता है।"
श्री आर मुरलीधरन जी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध दार्शनिक स्वामी पार्थसारथी के वरिष्ठ शिष्य हैं। स्वामी पार्थसारथी (उनके शिक्षक) वेदांत दर्शन के महानतम प्रतिपादकों में से एक हैं। उनका सहभागी होकर मनोविकास के दीक्षांत समारोह में आना और मनोविकास परिवार को आशीर्वाद देना एक अद्वितीय और सुखद अनुभव था। उन्होंने 'निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्' पर एक विशेष प्रकाश डाला और हमें यह समझाया कि कैसे कोई भी निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् हो सकता है।"
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"प्रेरणादायक संदेशों का सार"
वैद्य पंडित कैलाश मिश्र "दीनबंधु" जी अपने जीवनकाल में हमेशा ईश्वर की आराधना को प्राथमिकता दिया करते थे। वे हमेशा लोक कल्याण और  दरिद्र  नारायण की सेवा भक्ति में लीन रहते थे। उन्होंने अपने जीवन काल का क़रीब ४५ वर्ष एक दृढ़निष्ठा के साथ, शांत होकर गरीब, निर्धन व दलित लोगों की सेवा करने में लगाया था।  अलोक जी ने कहा-मैं पापाजी के द्वारा दिनांक आठ जनवरी दो हज़ार चार में लिखी गई एक प्रमाण पत्र का ज़िक्र करूँगा जो आज उनके स्मृति में प्रस्तुत व्याख्यान निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् विषय के साथ युक्ति संगत भी है।
वैद्य पंडित कैलाश मिश्र "दीनबंधु" जी अपने जीवनकाल में हमेशा ईश्वर की आराधना को प्राथमिकता दिया करते थे। वे हमेशा लोक कल्याण और दरिद्र नारायण की सेवा भक्ति में लीन रहते थे। उन्होंने अपने जीवन काल का क़रीब ४५ वर्ष एक दृढ़निष्ठा के साथ, शांत होकर गरीब, निर्धन व दलित लोगों की सेवा करने में लगाया था। अलोक जी ने कहा-मैं पापाजी के द्वारा दिनांक आठ जनवरी दो हज़ार चार में लिखी गई एक प्रमाण पत्र का ज़िक्र करूँगा जो आज उनके स्मृति में प्रस्तुत व्याख्यान निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् विषय के साथ युक्ति संगत भी है।
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सचेतन मनोविकास द्वारा उनके कर्मचारियों के जीवन के तनाव को दूर करने तथा कार्य में उतपादिता बढ़ाने के लिए किया गया।  सचेतन में हम कई प्रकार की गतिविधियां करते है जो पूर्ण रूप से हमारे आत्मा और मस्तिष्क से संबंधित है।
सचेतन मनोविकास द्वारा उनके कर्मचारियों के जीवन के तनाव को दूर करने तथा कार्य में उतपादिता बढ़ाने के लिए किया गया। सचेतन में हम कई प्रकार की गतिविधियां करते है जो पूर्ण रूप से हमारे आत्मा और मस्तिष्क से संबंधित है।
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रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड - सुरसा ने अपने मुँह का विस्तार सौ योजन का किया था
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