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अपने पूजा, सधना, यज्ञ, तप, त्याग, दान, ज्ञान और भोजन से प्रकृति के सत्व-रजस्-तमस गुण को समझ सकते हैं।

प्रकृति में त्रिविध गुण के प्रभाव को आपके द्वारा किए जाने वाले पूजा, सधना, यज्ञ, तप, त्याग, दान, ज्ञान और भोजन आदि में विविधता को समझ सकते हैं और इसका पता लगा सकते हैं। 

जब आप देवताओं का पूजन या आराधना या सधना करते हैं तो सात्विक साधना होती है वहीं जब असुरों का पूजन या आराधना राजसिक साधना कहलाती है और जब आप भूत प्रेतों या आत्माओं की साधना तामसिक साधना कहलाती है |

यज्ञ में जब आप पूर्ण विश्वास एवं बिना किसी लाभ की लालसा को रखते हैं तो यह सात्विक यज्ञ होता है | वहीं जब आप किसी लाभ की लालसा के लिए यज्ञ करते हैं तो राजसिक यज्ञ कहलाता है | और वैसा यज्ञ जो बिना वेद के नियमों को माने किया जाए, वह तामसिक यज्ञ कहलाता है |

आपकी तप(तपस्या) जब ईश्वर में पूर्ण श्रद्धा एवं योग की पद्धति के साथ की जती हय तो वैसा तप सात्विक तप कहलाता है | वहीं जब आप तपस्या जो सामाजिक प्रतिष्ठा, व्यक्तिगत लाभ के लिए करते हैं तो तप राजसिक तप कहलाता है | और वैसा तप जो शारीरिक कष्ठ के साथ किया जाये, मूर्खतापूर्ण एवं दूसरों को हानि पहुंचाने के उद्देश्य के लिए किया जाए, तामसिक तप कहलाता है |

यहाँ तक की दान देते समय अगर दान में कोई कर्ता का भाव न हो, सिर्फ परमार्थ के लिए दिया गया दान जो किसी के मदद के बदले न दिया गया हो तो यह सात्विक गुण से युक्त दान होता है। वहीं जब आप किसी के मदद या अनुदान के बदले में दान दे रहे हैं तो यह राजसिक दान कहलाता है | और बिना समय और अवांछनीय व्यक्ति को दिया गया दान तामसिक दान कहलाता है |

आपका त्याग प्रकृति में त्रिविध गुण के प्रभाव  से होता है जब आप अपने कर्तव्य को करते हुए सिर्फ कर्म के फल का त्याग सात्विक त्याग कहलाता है | अर्थात कर्म के फल का त्याग कर्म का नही | वहीं जब आप कठिनाई के भय से या कमजोरी वश कर्म का त्याग राजसिक त्याग कहलाता है |

आत्मज्ञानी स्वयं को इस संसार से पृथक देखते हैं और उनके लिए इसका अस्तित्व भी नहीं होता पर दूसरे लोगों के लिए संसार बना रहता है। यह ऐसे ही है जैसे आप जब किसी विमान से अपने गंतव्य पर उतर जाते हैं तो आपकी यात्रा समाप्त हो जाती है परन्तु दूसरे यात्रियों को लेकर विमान चलता रहता है।आपकी यात्रा समाप्त हो गयी है तो विमान ठहरा नहीं रहता। इसी तरह संसार विमान या बस के जैसे चलता रहता पर वह आत्मज्ञानी से पृथक है और अब उसके लिए मौजूद ही नहीं है।

प्रकृति में त्रिविध गुण का प्रभाव हमरे ज्ञान अर्जन पर पड़ता है और आप भूत आसानी से पता लगा सकते हैं की आपको मिलने वाला ज्ञान सत्व-रजस्-तमस किस प्रकार का है। वह ज्ञान जो हमें ईश्वर के सर्वव्यापी एवं एकाकी रूप का ज्ञान कराये, वह सात्विक ज्ञान कहलाता है | ऐसा मनुष्य उस एक परम ब्रम्ह के दर्शन हर एक जीव में कर्ता है| वहीं जब आप वैसा ज्ञान अर्जन करते हैं जिसमें मनुष्य को यह ज्ञान कराये कि विभिन्न प्रकार के जीव हैं और वे सब भिन्न हैं, वह राजसिक ज्ञान कहलाता है | और वैसा ज्ञान जिससे मनुष्य के लिप्तता भौतिक जगत में और बढ़ जाये वह तामसिक ज्ञान कहलाता है

आपका भोजन प्रकृति के सत्व-रजस्-तमस गुण के अनुसार आपको प्राप्त होता है जब भोजन जिससे आयु, स्वास्थ्य, शक्ति, उल्लास स्फूर्ति में वृद्धि हो सात्विक होता है।  वहीं जब आपका भोजन बहुत कड़वा, बहुत खट्टा, बहुत नमकीन, बहुत गरम, तीक्ष्ण एवं सुखा हुआ भोजन राजसिक भोजन होता है | और पकाने के बहुत देर या दिनों तक रखा हुआ भोजन, बहुत ठंडा, स्वाद रहित एवं बदबूदार भोजन तामसिक भोजन कहलाता है |