Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the learnpress domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/u992446118/domains/manovikasfamily.org/public_html/gyanshala/wp-includes/functions.php on line 6114

Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the learnpress domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/u992446118/domains/manovikasfamily.org/public_html/gyanshala/wp-includes/functions.php on line 6114

Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the thim-core domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/u992446118/domains/manovikasfamily.org/public_html/gyanshala/wp-includes/functions.php on line 6114
धारणा Conviction – Manovikas eGyanshala

The practice of dharana leads to the formation of a goal or objective.

 धारणा के अभ्यास से ध्येय यानी लक्ष्य या उद्देश्य बनता है

धारणा हमारी एक एकीकृत दृष्टिकोण है। किसी की भावनाओं, विचारों और शारीरिक संवेदनाओं को शांतिपूर्वक स्वीकार करने का और वर्तमान क्षण में इस पर जागरूक रहना ही धरणा है । धारणा में देश अर्थात् किसी एक स्थान पर और बंध यानी किसी विषय पर रोकने या टिका कर रखने का अभ्यास करते हैं। 

शरीर के अंदर मन को टिकाने के स्थान बहूत हैं और योग सधना में यह जानना ज़रूरी है। वैसे तो शरीर में मन को टिकाने के मुख्य स्थान मस्तक, भ्रूमध्य, नाक का अग्रभाग, जिह्वा का अग्रभाग, कण्ठ, हृदय, नाभि, भ्रुकुटी, ब्रह्मरणध आदि आध्यात्मिक देशरूप हैं परन्तु इनमें से सर्वोत्तम स्थान हृदय प्रदेश को माना गया है। हृदय प्रदेश का अभिप्राय शरीर के हृदय नामक अंग के स्थान से न हो कर छाती के बीचों बीच जो गड्डा होता है उससे है।

चंद्र, ध्रुव, आदि कोई बाह्य देशरूप विषय हैं इसी को ध्येय कहते हैं जिसमें ध्यान लगाया जाता है । ध्येय वह विचार जिसे पूरा करने के लिए कोई काम किया जाए

ध्यान का विषय। लक्ष्य; उद्देश्य; (ऑबजेक्ट) जिसे ध्यान में लाया जा सके।

ध्येय शब्द का उपयोग प्रेमचंद ने अपनी कहानी प्रतिशोध में लिखा है “अब यही उसके जीवन का ध्येय, यही उसकी सबसे बड़ी अभिलाषा है।”

जो अशुभ तथा शुभ परिणामों का कारण हो उसे ध्येय कहते हैं। शब्द, अर्थ और ज्ञान इस तरह तीन प्रकार का ध्येय कहलाता है।विश्व गुरु स्वामी विवेकानंदस्वामीजी के ध्येय वाक्य में उन्होंने कहा है की – उठो-जागो और लक्ष्य को प्राप्त करो। यही हमारी धारणा के लिय एक दृष्टिकोण है।

धारणा में अन्य विषयों से हटाकर चित्त को एक ही ध्येय विषय पर वृत्तिमात्र से ठहराया जाता है । इस प्रकार आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, आदि द्वारा जब चित्त स्थिर हो जाए तब उसको अन्य विषयों से हटाते हुए एक ध्येय विषय में बांधना अर्थात् ठहरना धारणा कहलता है ।  अतः धारणा का अर्थ केवल मन को ध्येय या लक्ष्य या  उद्देश्य या (ऑबजेक्ट) पर टिकाए रखना है।

शुरू शुरू में शरीर से बाहर ओ३म् गायत्री मन्त्र आदि में धारणा कुछ ही अवधि तक करनी चाहिए। जहां धारणा की जाती है वहीं ध्यान करने का विधान है। अभ्यास के लिए प्रारम्भ में आँखें खोल कर मात्र कुछ समय के लिए ही बाहर धारणा का अभ्यास करें।धारणा के लाभ बहूत सारे हैं-

1.       मन एकाग्र होता है।

2.       मन प्रसन्न, शान्त, तृप्त रहता है।

3.       मन की मलिनता का बोध अर्थात् परिज्ञान होता है।

4.       मन के विकारों को दूर करने में सफलता मिलती है।

5.       ध्यान की पूर्व तैयारी होती है।

6.       ध्यान अच्छा लगता है।

निम्नलिखित कारणों से प्राय: हम मन को लम्बे समय तक एक स्थान पर नहीं टिका पाते –

1. मन जड़ है को भूले रहना

2. भोजन में सात्विकता की कमी

3. संसारिक पदार्थों व संसारिक-संबंन्धों में मोह रहना

4. ‘ईश्वर कण – कण में व्याप्त है’ को भूले रहना

5. बार-बार मन को टिकाकर रखने का संकल्प नहीं करना

6. मन के शान्त भाव को भुलाकर उसे चंचल मानना

इस प्रकार अनेकों कारण हैं, जिन से मन धारणा स्थल पर टिका हुआ नहीं रह पाता। इन कारणों को प्रथम अच्छी तरह जान लेना चाहिए, फिर उनको दूर करने के लिए निरन्तर अभ्यास करते रहने से मन एक स्थान पर लम्बी अवधि तक टिक सकता है।

EmbedPress: Please enter your YouTube API key at EmbedPress > Platforms > YouTube to embed YouTube Channel.