Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the learnpress domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/u992446118/domains/manovikasfamily.org/public_html/gyanshala/wp-includes/functions.php on line 6114

Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the learnpress domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/u992446118/domains/manovikasfamily.org/public_html/gyanshala/wp-includes/functions.php on line 6114

Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the thim-core domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/u992446118/domains/manovikasfamily.org/public_html/gyanshala/wp-includes/functions.php on line 6114
हमारे जीवन की प्रक्रिया कैसी है – Manovikas eGyanshala

जीवन (अंग्रेजी: Life) अर्थात हमारे जन्म से मृत्यु के बीच की कालावधि ही जीवन कहलाती है, जो की हमें ईश्वर द्वारा दिया गया एक वरदान है। लेकिन हमारा जन्म क्या हमारी इच्छा से होता है? नहीं, यह तो मात्र नर और मादा के संभोग का परिणाम होता है जो प्रकृति के नियम के अंतर्गत है। इसके अतिरिक्त जीवन का मुख्य अंग एक चेतन तत्त्व है जो जीवन की सभी क्रियाओं का साक्षी होता है।

एक ऐसा विकास जो जैविक, संज्ञानात्मक तथा समाज-सांवेगिक प्रक्रियाओं की परस्पर क्रिया से प्रभावित होता है। जीवन की हर एक प्रक्रिया के लिए जन्म, मरण तथा इन्द्रियों की व्यवस्था होना आवश्यक है। 

जीवन की एक सहज गतिविधियों से भी हम हर एक प्रक्रिया के लिए जन्म, मरण तथा इन्द्रियों को समझ सकते हैं। जीवन की इस सहज गतिविधि को समझने के लिए कोई विद्यालय या विश्वविद्यालय में पढ़ने की जरूरत नही है, सहज गतिविधि तो हमारे स्मृति पर आधारित होती हैं और अनुभवों के आधार पर व्यक्तिगत रूप से संग्रहीत सफल प्रतिक्रिया प्रदान करती हैं – में कोई प्रशिक्षण शामिल नहीं होता है, वे अंतर्निहित होती हैं और किसी प्रशिक्षण के बिना ही इस्तेमाल के लिए तैयार रहती हैं। कुछ सहज वृत्ति वाले व्यवहार प्रकट होने के लिए परिपक्वता संबंधी प्रक्रियाओं पर निर्भर करते हैं।

जीवन की हर एक प्रक्रिया में जैविक प्रवृत्तियां भी हैं जो सहज तथा जैविक रूप से उत्प्रेरित व्यवहार होते हैं जिन्हें आसानी से सीखा जा सकता है। उदाहरण के लिए, एक बछड़ा एक घंटे में ही खड़े होना, चलना, कूदना-फांदना तथा दौड़ना सीख सकता है। एक जैविक प्रवृत्ति का मतलब यह भी है कि कुछ व्यक्ति अपनी आनुवंशिक संरचना के कारण कुछ विशेष परिस्थितियों तथा बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं। 

जीवन की हर एक प्रक्रिया को कैसे संपादित करना है इसके लिए १८ तत्व की आवश्यकता होती है, जिसमें तीन अंतःकरण (मन, बुद्धि, अहंकार) तथा पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ एवं पाँच कर्मेन्द्रियों के साथ तालमेल होना जरूरी है। 

जब जीवन की प्रक्रिया संपादित होती है तो पुरुष के चेतन यानी इसमें आत्मा, जीव होने का आभास होता है। पुरुष निर्गुण है अर्थात् सत्व, रज और तम इन तीन गुणों से परे, जिसमें कोई अच्छा गुण न हो, ना ही कोई बुरा गुण यानी विशेषता या गुणों से रहित होता है। पुरुष को विशेष माना गया है क्यूँकि इसमें असाधारण, असामान्य, अधिक से अधिक, प्रचुर शक्ति और संभावनाएं हैं।पुरुष अविषय है यानी जो विषय न हो- अगोचर, प्रतिपाद्य, अनिर्वचनीय, जिसमें कोई विषय न हो । विषय शून्य, समाधि की स्थिति अर्थात परमानंद की स्थिति में हमारी सारी इंद्रियां अविषय हो जाती हैं। पुरुष को विवेकी की संज्ञा दी गई है क्यूँकि वह भले बुरे का ज्ञान रखने वाला, विचारवान, बुद्धिमान, समझदार, ज्ञानी, न्यायशील जो अभियोगों आदि का न्याय करता हो और दार्शनिक माना गया है। पुरुष वास्तव में अप्रसवधर्मी है वह किसी चीज को जन्म नहीं दे सकता, क्योंकि वास्तव में प्रकृति ही समस्त सृष्टि का मूल कारण है। अगर हम पुरुष के जीवन की प्रक्रिया को समझते हैं तो  यह साक्षित्व है यानी उसे उसकी समस्त दशाओं के भाव का निचोड़ पता है। पुरुष कैवल्य की स्थिति में है जब ज्ञान या विवेक उत्पन्न हो जाता है तो दुख सुखादि – अहंकार, प्रारब्ध, कर्म और संस्कार के लोप हो जाते हैं और आत्मा के चित्र स्वरूप को पा कर पुरुष आवागमन से मुक्त यानी मोक्ष को प्राप्त हो जाता है।पुरुष मध्यस्थ हो कर जीवन के हर पक्ष या विपक्ष, सही ग़लत का निराकरण कर सकता है ।पुरुष दृष्टत्व हो कर स्पष्ट और सरलता से जीवन को समझ कर व्यावहारिक, गुण, धर्म या भाव के साथ कोई भी कार्य कर सकता है । पुरुष को अकृतृत्व  धर्मों की भी सिद्धि होती है जिससे वह कर्ता होने की अवस्था, गुणधर्म या भाव के साथ कर्तव्य शक्ति से कार्य में उपादान के विषय में ज्ञान प्राप्त करने या कोई काम करने की इच्छा करता है और उसके लिए प्रयत्न या प्रवृत्ति कर सकता है।