8th Convocation cum Award Ceremony 2023 ‘My identity is cosmic - अहं ब्रह्माऽस्मि’
Vaidya Pandit Kailash Mishra “Deenbandhu” Memorial Lecture
Dear Sir/Madam,
Manovikas Family request the honour of your presence and oblige us at the 8th Convocation cum Award Ceremony 2023 and Vaidya Pandit Kailash Mishra “Deenbandhu” Memorial Lecture on
‘My identity is cosmic – अहं ब्रह्माऽस्मि’
Date and Time: Monday, January 2, 2023, 03:00 PM
Venue: Manovikas, 60 A Radhey Puri-1, Delhi- 110051
The programme will be available in Hybrid (physical and online) mode on ZOOM Link: www.bit.ly/3WbeXjy.
It will be a great pleasure to have your warm presence at the grand event at Manovikas Family.
Mrs Stuti Kacker, IAS (Retd.)
Patron
Dr Nimesh G. Desai
President
‘Ahaṁ Brahmāsmi’ My identity is cosmic
Initially, this world was just a single body (ātman) shaped like a man. He looked around and saw nothing but himself. He first said, ‘Here I am!’ and the name ‘I’ came into being. This ‘I’ is a unique expression as a pure mental abstraction but as radical openness.
Ahaṁ Brahmāsmi means “I am the Absolute” or “My identity is cosmic.” Still, it can also be translated as “you are part of god just like any other element.”
-Brihadaranyaka Upanishad 1.4.10
Auspicious presence of distinguished speaker
Shri Krishna Kant Dwivedi
He is an internationally acclaimed exponent of Vedanta Philosophy. He is the Founder of Spiritual Literacy, spread across India, Canada and the USA.
Introduction to Subject & Topic by:
Shri Arvind Sharda
Motivational Speaker
Vaidya Pandit Kailash Mishra “Deenbandhu”
Vaidya Pandit Kailash Mishra “Deenbandhu” led a holy and exemplary life like a saint. He provided medical assistance to the underprivileged population in the remote area of Purnia, Bihar.
The register of the genealogy of Maithil Brahmins is still preserved. Pandit Kailash Mishra was a descendant of Mandan Mishra, a contemporary of Adi Shankaracharya, a famous guru of Advaita Vedanta philosophy, who later became a monk after being defeated in a spiritual debate with Shankaracharya and was named Sureshvaracharya. In the 8th century, Adi Shankaracharya and his disciple Sureshvaracharya established the first Sringeri Matha and Sharda Matha. The Mahavakya of this Math is ‘Aham Brahmasmi’ and is placed under ‘Yajurveda’. It is said that the great scholar, Bharti, the wife of Mandan Mishra, the author of Brahma Siddhi, was an incarnation of the Maa Saraswati. Those sannyasins who received initiation under the Sringeri Math are given the names of the Saraswati, Bharati and Puri sects.
Kindly rsvp on mobile no.: 9911107772
Manovikas Charitable Society
60A, Radheypuri Extn.-I, Delhi-110051.
www.manovikas.family
Supported by
8वां दीक्षांत सह पुरस्कार समारोह 2023 'मेरी पहचान लौकिक है - अहं ब्रह्माऽस्मि'
वैद्य पंडित कैलाश मिश्रा "दीनबंधु" स्मृति व्याख्यान
प्रिय महोदय / महोदया,
मनोविकास परिवार आपको सादर अनुरोध करता है की आप 8वें दीक्षांत सह पुरस्कार समारोह 2023 और वैद्य पंडित कैलाश मिश्रा “दीनबंधु” स्मृति व्याख्यान- ‘मेरी पहचान लौकिक है – अहं ब्रह्माऽस्मि’ में उपस्थिति होकर हमें उपकृत करने की कृपा करें।
दिनांक और समय: सोमवार, 2 जनवरी 2023, दोपहर 03:00 बजे
स्थान: मनोविकास, 60 ए राधे पुरी-1, दिल्ली- 110051
यह प्रोग्राम ज़ूम पर हाइब्रिड (भौतिक और ऑनलाइन) मोड में उपलब्ध होगा।
मनोविकास परिवार के भव्य कार्यक्रम में आपकी उपस्थिति से हमें बहुत खुशी होगी।
श्रीमती स्तुति कक्कड़, आईएएस (सेवानिवृत्त)
संरक्षक
डॉ निमेश जी देसाई
अध्यक्ष
‘अहं ब्रह्माऽस्मि’ मेरी पहचान लौकिक है
प्रारंभ में यह दुनिया एक आदमी के आकार का एक अकेला शरीर (आत्मान) था। उसने चारों ओर देखा और अपने अलावा कुछ नहीं देखा। उसने जो पहली बात कही, वह थी, ‘मैं यहाँ हूँ!’ और उसी से ‘मैं’ नाम अस्तित्व में आया। यह ‘मैं’ शुद्ध मानसिक अमूर्तता के रूप में लेकिन मौलिक खुलेपन के रूप में एक अनूठी अभिव्यक्ति है।
अहम् ब्रह्मास्मि का अर्थ है “मैं निरपेक्ष हूं” या “मेरी पहचान ब्रह्मांडीय है,” लेकिन इसका अनुवाद यह भी किया जा सकता है कि “आप किसी अन्य तत्व की तरह ही भगवान का हिस्सा हैं।”
बृहदारण्यक उपनिषद 1.4.10
विशिष्ट वक्ता की शुभ उपस्थिति
श्री कृष्णकांत द्विवेदी
वे वेदांत दर्शन के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित प्रतिपादक हैं। वह भारत, कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका में फैली आध्यात्मिक साक्षरता के संस्थापक हैं।
विषय और प्रसंग परिचय:
श्री अरविन्द शारदा
प्रेरक वक्ता
वैद्य पंडित कैलाश मिश्र "दीनबंधु" स्मृति व्याख्यान
वैद्य पंडित कैलाश मिश्र “दीनबंधु” ने एक संत की तरह पवित्र और अनुकरणीय जीवन व्यतीत किया। उन्होंने पूर्णिया, बिहार के दूरस्थ क्षेत्र में वंचित आबादी को चिकित्सा सहायता दी।
मैथिल ब्राह्मणों की वंशावली पंजी व्यवस्था अभी भी सुरक्षित रखी गई है। पंडित कैलाश मिश्र, आदि शंकराचार्य के समकालीन अद्वैत वेदांत दर्शन के बड़े प्रसिद्ध आचार्य मंडन मिश्र के वंशज थे, यही बाद में शंकराचार्य द्वारा शास्त्रार्थ में पराजित होकर संन्यासी हो गए और उनका नाम सुरेश्वराचार्य पड़ा। आठवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने अपने शिष्य सुरेश्वराचार्य के साथ यहाँ कुछ दिन वास किया था और प्रथम मठ शृंगेरी तथा शारदा मठों की स्थापना की थी। इस मठ का महावाक्य ‘अहं ब्रह्मास्मि’ है तथा मठ के अन्तर्गत ‘यजुर्वेद’ को रखा गया है। कहा जाता है की ब्रह्म सिद्धि के रचियता मंडन मिश्र की पत्नी भारती, जो एक महान विदुषी माता सरस्वती की अवतार थी। श्रृंगेरी मठ के अन्तर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले संन्यासियों के नाम के बाद सरस्वती, भारती तथा पुरी सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है।